राजस्थान के प्रमुख संत एवं समुदाय

 

1. जसनाथी सम्प्रदाय

  • संस्थापक – जसनाथ जी जाट
  • जसनाथ जी का जन्म 1482 ई. में कतरियासर (बीकानेर) में हुआ।
  • प्रधान पीठ – कतरियासर (बीकानेर) में है।
  • यह सम्प्रदाय 36 नियमों का पालन करता है।
  • पवित्र ग्रन्थ सिमूदड़ा और कोडाग्रन्थ है।
  • इस सम्प्रदाय का प्रचार-प्रसार ” परमहंस मण्डली” द्वारा किया जाता है।
  • इस सम्प्रदाय के लोग अग्नि नृत्यय में सिद्धहस्त है।, जिसके दौरान सिर पर मतीरा फोडने की कला का प्रदर्शन किया जाता है।
  • दिल्ली के सुलतान सिकंदर लोदी न जसनाथ जी को प्रधान पीठ स्थापित करने के लिए भूमि दान में दी थी।
  • जसनाथ जी को ज्ञान की प्राप्ति ” गोरखमालिया (बीकानेर)” नामक स्थान पर हुई।

सम्प्रदाय की उप-पीठे

इस सम्प्रदाय की पांच उप-पीठे है।

1. बमलू (बीकानेर)

2. लिखमादेसर (बीकानेर)

3. पूनरासर (बीकानेर)

4. मालासर (बीकानेर)

5. पांचला (नागौर)

2. दादू सम्प्रदाय

  • संस्थापक – दादू दयाल जी
  • दादूदयाल जी का जन्म 1544 ई. में अहमदाबाद (गुजरात) में हुआ।
  • इस सम्प्रदाय का उपनाम कबीरपंथी सम्प्रदाय है।
  • दादूदयाल जी के गुरू वृद्धानंद जी (कबीर वास जी के शिष्य) थे।
  • ग्रन्थ -दादू वाणी, दादू जी रा दोहा
  • ग्रन्थ की भाषा सधुकड़ी (ढुढाडी व हिन्दी का मिश्रण) है।
  • प्रधान पीठ नरेना/नारायण (जयपुर) में है।
  • भैराणा की पहाडियां (जयपुर) में तपस्या की थी।
  • दादू जी के 52 शिष्य थे, जो 52 स्तम्भ कहलाते है।
  • 52 शिष्यों में इनके दो पुत्र गरीब दास जी व मिस्किन दास जी भी थे।

3. विश्नोई सम्प्रदाय

  • सस्थापक -जाम्भोजी
  • जाम्भोजी का जनम 1451 ई. में कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर पीपासर (नागौर) में हुआ।
  • ये पंवार वंशीय राजपूत थे।
  • प्रमुख ग्रन्थ – जम्भ सागर, जम्भवाणी, विश्नोई धर्म प्रकाश
  • नियम-29 नियम दिए।
  • इस सम्प्रदाय के लोग विष्णु भक्ति पर बल देते है।
  • यह सम्प्रदाय वन तथा वन्य जीवों की सुरक्षा में अग्रणी है।

प्रमुख स्थल

1.मुकाम – मुकाम- नौखा तहसील बीकानेर में है। यह स्थल जाम्भों जी का समाधि स्थल है।

2.लालासर – लालासर (बीकानेर) में जाम्भोजी को निर्वाण की प्राप्ति हुई।

3.रामडावास – रामडावास (जोधपुर) में जाम्भों जी ने अपने शिष्यों को उपदेश दिए।

4.जाम्भोलाव – जाम्भोलाव (जोधपुर), पुष्कर (अजमेर) के समान एक पवित्र तालाब है, जिसका निर्माण जैसलमेर के शासक जैत्रसिंह ने करवाया था।

5.जांगलू (बीकानेर), रोटू गांव (नागौर) विश्नोई सम्प्रदाय के प्रमुख गांव है।

6.समराथल – 1485 ई. में जाम्भो ने बीकानेर के समराथल धोरा (धोक धोरा) नामक स्थान पर विश्नोई सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया।

जाम्भों जी को पर्यावरण वैज्ञानिक /पर्यावरण संत भी कहते है।

जाम्भों जी ने जिन स्थानों पर उपदेश दिए वो स्थान सांथरी कहलाये।

4. लाल दासी सम्प्रदाय

  • संस्थापक -लाल दास जी। समाधि -शेरपुरा (अलवर)
  • लालदास जी का जन्म धोली धूव गांव (अलवर में हुआ)
  • लाल दास जी को ज्ञान की प्राप्ति तिजारा (अलवर)
  • प्रधान पीठ – नगला जहाज (भरतपुर) में है।
  • मेवात क्षेत्र का लोकप्रिय सम्प्रदाय है।

5. चरणदासी सम्प्रदाय

  • संस्थापक -चारणदास जी
  • चरणदास जी का जन्म डेहरा गांव (अलवर) में हुआ।
  • वास्तविक नाम- रणजीत सिंह डाकू
  • राज्य में पीठ नहीं है।
  • प्रधान पीठ दिल्ली में है।
  • चरणदास जी ने भारत पर नादिर शाह के आक्रमण की भविष्यवाणी की थी।
  • मेवात क्षेत्र में लोकप्रिय सम्प्रदाय ळै।इनकी दो शिष्याऐं दयाबाई व सहजोबाई थी।
  • दया बाई की रचनाऐं – “विनय मलिका” व “दयाबोध”
  • सहजोबाई की रचना – “सहज प्रकाश”

6. प्राणनाथी सम्प्रदाय

  • संस्थापक – प्राणनाथ जी
  • प्राणनाथ जी का जन्म जामनगर (गुजरात) में हुआ।
  • राज्य में पीठ – जयपुर मे।
  • प्रधान पीठ पन्ना (मध्यप्रदेश) में है।
  • पवित्र ग्रन्थ – कुलजम संग्रह है, जो गुजराती भाषा में लिखा गया है।

7. वैष्णव धर्म सम्प्रदाय

इसकी चार शाखाऐं है।

1. वल्लभ सम्प्रदाय/पुष्ठी मार्ग सम्प्रदाय

2. निम्बार्क सम्प्रदाय /हंस सम्प्रदाय

3. रामानुज सम्प्रदाय/रामावत/रामानंदी सम्प्रदाय

4. गौड़ सम्प्रदाय/ब्रहा्र सम्प्रदाय

1. वल्लभ सम्प्रदाय /पुष्ठी मार्ग सम्प्रदाय

  • संस्थापक -आचार्य वल्लभ जी
  • अष्ट छाप मण्डली – यह मण्डली वल्लभ जी के पुत्र विठ्ठल नाथ जी ने स्थापित की थी, जो इस सम्प्रदाय के प्रचार-प्रसार का कार्य करती थी।
  • प्रधान पीठः- श्री नाथ मंदिर (नाथद्वारा-राजसमंद)
  • नाथद्वारा का प्राचीन नाम “सिहाड़” था।
  • 1669 ई. में मुगल सम्राट औरंगजेब ने हिन्दू मंदिरों तथा मूर्तियों को तोडने का आदेश जारी किया । फलस्वरूप वृंदावन से श्री नाथ जी की मूर्ति को मेवाड़ लाया गया । यहां के शासक राजसिंह न 1672 ई. में नाथद्वारा में श्री नाथ जी की मूर्ति को स्थापित करवाया।
  • यह बनास नदी के किनारे स्थित है।वल्लभ सम्प्रदाय दिन में आठ बार कृष्ण जी की पूजा- अर्चना करता है।
  • वल्लभ सम्प्रदाय श्री कृष्ण के बालरूप की पूजा-अर्चना करता है।
  • किशनगढ़ के शासक सांवत सिंह राठौड इसी सम्प्रदाय से जुडे हुए थे।
  • इस सम्प्रदाय की 7 अतिरिक्त पीठें कार्यरत है।
  1. बिठ्ठल नाथ जी -नाथद्वारा (राजसमंद)
  2. द्वारिकाधीश जी – कांकरोली (राजसमंद)
  3. गोकुल चन्द्र जी – कामा (भरतपुर)
  4. मदन मोहन जी – मामा (भरतपुर)
  5. मथुरेश जी – कोटा
  6. बालकृष्ण जी – सूरत (गुजरात)
  7. गोकुल नाथ जी – गोकुल (उत्तर -प्रदेश)
  8. मूल मंत्र – श्री कृष्णम् शरणम् मम्।
  • दर्शन – शुद्धाद्वैत
  • पिछवाई कला का विकास वल्लभ सम्प्रदाय के द्वारा

2. निम्बार्क सम्प्रदाय/हंस सम्प्रदाय

  • संस्थापक – आचार्य निम्बार्क
  • राज्य में प्रमुख पीठ:- सलेमाबाद (अजमेर) है।
  • राज्य की इस पीठ की स्थापना 17 वीं शताब्दी में पुशराम देवता ने की थी, इसलिए इसको “परशुरामपुरी” भी कहा जाता है।
  • सलेमाबाद (अजमेर में) रूपनगढ़ नदी के किनारे स्थित है।
  • परशुराम जी का ग्रन्थ – परशुराम सागर ग्रन्थ।
  • निम्बार्क सम्प्रदाय कृष्ण-राधा के युगल रूप की पूजा-अर्चना करता है।
  • दर्शन – द्वैता द्वैत

3. रामानुज/रामावत/रामानंदी सम्प्रदाय

  • संस्थापक -आचार्य रामानुज
  • रामानुज सम्प्रदाय की शुरूआत दक्षिण भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत आचार्य रामानुज द्वारा की गई।
  • उत्तर भारत में इस सम्प्रदाय की शुरूआत रामानुज के परम शिष्य रामानंद जी द्वारा की गई और यह सम्प्रदाय, रामानंदी सम्प्रदाय कहलाया।
  • कबीर जी, रैदास जी, संत धन्ना, संत पीपा आदि रामानंद जी के शिष्य रहे है।
  • राज्य में रामानंदी सम्प्रदाय के संस्थापक कृष्णदास जी वयहारी को माना जाता है।
  • “कृष्णदास जी पयहारी” ने गलता (जयपुर) में रामानंदी सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ स्थापित की। “कृष्णदास जी पयहारी” के ही शिष्य “अग्रदास जी” ने रेवासा ग्राम (सीकार) में अलग पीठ स्थापित की तथा “रसिक” सम्प्रदाय के नाम से अलग और नए सम्प्रदाय की शुरूआत की।
  • राजानुज/रामावत/रामानदी सम्प्रदाय राम और सीता के युगल रूप की पूजा करता है।
  • दर्शन:- विशिष्टा द्वैत
  • सवाई जयसिंह के समय रामानुज सम्प्रदाय का जयपुर रियासत में सर्वाधिक विकास हुआ।
  • रामारासा नामक ग्रंथ भट्टकला निधि द्वारा रचित यह ग्रन्थ सवाई जयसिंह के काल में लिखा था।

4. गौड़ सम्प्रदाय/ब्रहा्र सम्प्रदाय

  • संस्थापक -माध्वाचार्य
  • भारत में इस सम्प्रदाय का प्रचार-प्रसार मुगल सम्राट अकबर के काल में हुआ।
  • राज्य में इस सम्प्रदाय का सर्वाधिक प्रचार जयपुर के शासक मानसिंह -प्रथम के काल में हुआ।
  • मानसिंह -प्रथम ने वृन्दावन में इस सम्प्रदाय का गोविन्द देव जी का मंदिर निर्मित करवाया
  • प्रधान पीठ:- गोविन्द देव जी मंदिर जयपुर में है।
  • इस मंदिर का निर्माण सवाई जयसिंह ने करवाया।
  • करौली का मदनमोहन जी का मंदिर भी इसी सम्प्रदाय का है।
  • दर्शन – द्वैतवाद

7. शैवमत सम्प्रदाय

इसकी चार श्शाखाऐं है।

1. कापालिक

2. पाशुपत

3. लिंगायत

4. काश्मीरक

1. कापालिक

  • कापालिक सम्प्रदाय भैख की पूजा भगवान शिव के अवतार के रूप में करता है।
  • इस सम्प्रदाय के साधु तानित्रक विद्या का प्रयोग करते है।
  • कापालिक साधु श्मसान भूमि में निवास करते हैं।
  • कापालिक साधुओं को अघोरी बाबा भी कहा जाता है।

2. पाशुपत

  • प्रवर्तक:- लकुलिश (मेवाड़ से जुडे हुए थे)
  • यह सम्प्रदाय दिन में अनेक बार भगवान शिव की पूजा -अर्जना करता है।

8.नाथ सम्प्रदाय

  • यह शैवमत की ही एक शाखा है जिसका संस्थापक – नाथ मुनी को माना जाता है।
  • प्रमुख साधु:- गोरख नाथ, गोपीचन्द्र, मत्स्येन्द्र नाथ, आयस देव नाथ, चिडिया नाथ, जालन्धर नाथ आदि।
  • जोधपुर के शासक मानसिंह नाथ सम्प्रदाय से प्रभावित थे।
  • मानसिंह ने नाथ सम्प्रदाय के राधु आयस देव नाथ को अपना गुरू माना और जोधपुर में इस सम्प्रदाय का मुख्य मंदिर महामंदिर स्थापित करवाया।
  • नाथ सम्प्रदाय की दो शाखाऐं थी।

1. राताडंूगा (पुष्कर) मे – वैराग पंथी

2. महामंदिर (जोधपुर) में – मानपंथी

9. रामस्नेही सम्प्रदाय

  • यह वैष्णव मत की निर्गणु भक्ति उपसक विचारधारा का मत रखने वाली शाखा है।
  • इस सम्प्रदाय की स्थापना रामानंद जी के ही शिष्यों ने राजस्थान में अलग-अलग क्षेत्रों में क्षेत्रिय शाखाओं द्वारा की।
  • इस सम्प्रदाय के साधु गुलाबी वस्त्र धारण करते है तथा दाडी-मूंछ नही रखते है।
  • प्रधान पीठ:-शाहपुरा (भीलवाडा) प्राचीन पीठ- बांसवाडा में थी।
  • इस सम्प्रदाय की चार शाखाऐं है।

1.शाहपुरा (भीलवाडा) -संस्थापक -रामचरणदास जी- काव्यसंग्रह- अनभैवाणी

2.रैण (नागौर) – दरियाव जी

3.सिंहथल (बीकानेर) हरिराम दास जी- रचना निसानी

4.खैडापा (जोधपुर)- रामदास जी

  • रामचरण दास जी का जन्म सोडाग्राम (टोंक) में हुआ।

10. राजा राम सम्प्रदाय

  • संस्थापक – राजाराम जी
  • प्रधान पीठ – शिकारपुरा (जोधपुर)
  • यह सम्प्रदाय मारवाड़ क्षेत्र में लोकप्रिय है।
  • संत राजा राम जी पर्यावरण प्रेमी व्यक्ति थे।
  • इन्होंने वन तथा वन्य जीवों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

11. नवल सम्प्रदाय

  • संस्थापक -नवल दास जी
  • प्रधान पीठ – जोधपुर
  • जोधपुर व नागौर क्षेत्र में लोकप्रिय है।

12. अलखिया सम्प्रदाय

  • संस्थापक -स्वामी लाल गिरी
  • प्रधान पीठ – बीकानेर
  • क्षेत्र -चुरू व बीकानेर
  • पवित्र ग्रन्थ:- अलख स्तुति प्रकाश

13. निरजंनी सम्प्रदाय

  • संस्थापक – संत हरिदास जी (डकैत)
  • जन्म – कापडौद (नागौर)
  • प्रधान पीठ – गाढा (नागौर)
  • दो शाखाऐं है –

    1. निहंग
    2. घरबारी

14. निष्कंलक सम्प्रदाय

  • संस्थापक – संत माव जी
  • जन्म – साबला ग्राम – आसपुर तहसील (डूंगरपुर)
  • माव जी को ज्ञान की प्राप्ति बेणेश्वर धाम (डूंगरपुर) में हुई
  • मावजी का ग्रन्थ/ उपदेश चैपडा कहलाता है। यह बागड़ी भाषा गया है।
  • माव जी बागड़ क्षेत्र में लोकप्रिय है। इन्होंने भीलों को आध्यात्मिक

15. मीरा दासी सम्प्रदाय

  • संस्थापक – मीरा बाई
  • मीरा बाई को राजस्थान की राधा कहते है।
  • जन्म कुडकी ग्राम (नागौर) में हुआ।
  • पिता- रत्न सिंह राठौड़
  • दादा -रावदूदा
  • परदादा -राव जोधा
  • राणा सांगा के बडे़ पुत्र भोजराज से मीरा बाई का विवाह हुआ और 7 वर्ष बाद उनके पति की मृत्यु हो गई।
  • पति की मृत्यु के पश्चात् मीराबाई ने श्री कृष्ण को अपना पति मानकर दासभाव से पूजा-अर्जना की।
  • मीरा बाई ने अपना अन्तिम समय गुजरात के राणछौड़ राय मंदिर में व्यतीत किया और यहीं श्री कृष्ण जी की मूर्ति में विलीन हो गई।
  • प्रधान पीठ- मेड़ता सिटी (नागौर)
  • मीरा बाई के दादा रावदूदा ने मीरा के लिए मेड़ता सिटी में चार भुजा नाथ मंदिर (मीरा बाई का मंदिर) का निर्माण किया।
  • मीरा बाई के मंदिर – मेडता सिटी, चित्तौड़ गढ़ दुर्ग में।
  • मीरा बाई की रचनाऐं

1. मीरा पदावलिया (मीरा बाई द्वारा रचित)

2. नरसी जी रो मायरो (मीरा बाई के निर्देशन में रतना खाती द्वारा रचित)

  • डाॅ गोपीनाथ शर्मा के अनुसार मीरा बाई का जन्म कुडकी ग्राम में हुआ जो वर्तमान में जैतरण तहसील (पाली) में स्थित है।
  • कुछ इतिहासकार मीरा बाई का जन्म बिजौली ग्राम (नागौर) में मानते है। उनके अुनसार मीर बाई का बचपन कुडकी ग्राम में बीता।

16. संत धन्ना

  • जन्म – धुंवल गांव (टोंक) में जाट परिवार में हुआ।
  • संत धन्ना रामानंद जी के शिष्य थे।

17. संत पीपा

  • जन्म – गागरोनगढ़ (झालावाड़) में हुआ।
  • पिता का नाम – कडावाराव खिंची।
  • बचपन का नाम – प्रताप था।
  • पीपा क्षत्रिय दरजी सम्प्रदाय के लोकप्रिय संत थे।
  • मंदिर -समदडी (बाडमेर)
  • गुफा – टोडाराय (टोंक)
  • समाधि – गागरोनगढ़ (झालावाड़)
  • राजस्थान में भक्ति आन्दोलन का प्रारम्भ कत्र्ता संत पीपा को माना जाता है।

18. संत रैदास

  • मीरा बाई के गुरू थे।
  • रामानंद जी के शिष्य थे।
  • मेघवाल जाति के थे।
  • इनकी छत्तरी चित्तौड़गढ दुर्ग में स्थित है।

19. गवरी बाई

  • गवरी बाई को बागड़ की मीरा कहते है।
  • डूंगरपुर के महारावल शिवसिंह ने डूंगरपुर में गवरी बाई का मंदिर बनवायया जिसका नाम बाल मुकुन्द मंदिर रखा।
  • गवरी बाई बागड़ क्षेत्र में श्री कृष्ण की अनन्य भक्तिनी थी।

20. भक्त कवि दुर्लभ

  • ये कृष्ण भक्त थे।
  • इन्हे राजस्थान का नृसिंह कहते है।
  • ये बागड़ क्षेत्र के प्रमुख संत है। यह इनका कार्य क्षेत्र रहा है।

21. संत खेता राज जी

  • संत खेता राम जी ने बाड़मेंर में आसोतरा नामक स्थान पर ब्रहा्रा जी का मंदिर निर्मित करवाया।

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